बचपन से ही जिम्मेदारी नाम की चीज खंड पर रहती हे ना तोह तमाम उम्र भी निभानी पड़ती हे,
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जिंदगी
बचपन से ही जिम्मेदारी नाम की चीज खंड पर रहती हे ना तोह तमाम उम्र भी निभानी पड़ती हे,
खुशबु और नजमा के जनम से ही अब्बू का कुछ भी सहारा नहीं रहा हे अम्मी को, लोग शादी ही क्यों करते है?
अगर पता हे के, लड़का होगा या लड़की यह हमारे हाथ में नहीं होता फिर भी तमाम मुसीबतो का ठीकरा औरतो के माथे पर थाम के खुद अपने आप को अलग कर देते हे,
मुझे नफरत हे ऐसे आदमियोकि जात पेही,
हमेशा धोका देते ह, औरत तोह जैसे इनके किये पाओ की झूती ही हो,
अगर अब्बू गलत थे, तोह बड़े आबू ने तोह खुछ समझाना चाहिए था न उनको,
लेकिन क्या, सबको खानदान का चिराग चाहिए,,,,
पता नहीं, क्या करेंगे ऐसे चिरागो का अगर वह काम ही न आये....
मुझे याद ही नहीं के अब्बू के कब हम बहनो से प्यार से बात की हो?
में तो हमेशा क्लास में फर्स्ट आयी हु, लेकिन अभी यूनिवर्सिटी के एडमिशन तक कभीभी कोई तारीफ नहीं मिली अब्बू से,
और एक तरफ अम्मी हे के, उनसे आस लगाए बैठी ह..
अच्छा हुआ, अम्मी का जॉब तोह चल रहा ह नहीं तोह बेहत मुश्किल होती थी हमको जीने में..
यूनिवर्सिटी का एडमिशन का तोह बाजुमें रखके, तब तक अगर वेकेशन क्लास अगर लेलु तोह अम्मी को घर खर्चे में मदत भी हो जाएगी,
आईडिया अच्छा ह, चलो देखते ह, वैसे भी रेगुलर कोचिंग ख़त्म तोह कर दी हे मैंने बच्चो की...
अभी इतना लोड नहीं आता ह, खुशबु और नजमा भी तोह हाथ बटा लेती ह कोचिंग में....
चलो अम्मी आ जाये तब तक खाना लगा देती हु, बाद में पढ़ना भी तोह हे...
नहीं तो गया आज का दिन भी... पानी में। ...
To be continue....
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